स्थापना के 138 वर्ष पूरे करने के अवसर पर कांग्रेस द्वारा गुरुवार को नागपुर में आयोजित होने जा रही रैली और मणिपुर से 14 जनवरी, 2024 को प्रारम्भ हो रही राहुल गांधी की 'भारत न्याय यात्रा' पार्टी को तो मजबूती प्रदान करेगी ही, देश के लोकतंत्र को भी अपने पांवों पर फिर से खड़ा करेगी। कांग्रेस आज एक विशाल सभा करने जा रही है, तो राहुल की 30 मार्च को मुंबई में पूरी होने वाली दूसरी यात्रा उनकी सितम्बर, 2022 से प्रारम्भ (जो 30 जनवरी को जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में समाप्त हुई थी) हुई 'भारत जोड़ो यात्रा' का सीक्वल कही जा सकती है।
दोनों का आयोजन ऐसे वक्त पर हो रहा है जब देश में लोकसभा चुनावों की पदचाप सुनाई देने लगे हैं। दो कार्यकाल पूरा करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी तीसरी बार केन्द्रीय सत्ता पर काबिज होने की जुगत में है, तो वहीं कांग्रेस अपने दम और अन्य 27 दलों के सहयोग से उसे रोकने का संकल्प किये बैठी है। इस लिहाज़ से ये दोनों आयोजन कांग्रेस के लिये बहुत महत्वपूर्ण तो हैं ही, उसकी मजबूती इंडिया गठबन्धन को भी ताकत प्रदान करेगी जो उसके नेतृत्व में ही बना है। सभी विपक्षी पार्टियां उसकी ओर आशा भरी निगाहों से देख रही हैं। कांग्रेस की छतरी तले ये दल कुछ ऐसा ही भरोसा करके आये हैं। अगर कांग्रेस शक्तिहीन होती है तो उसका संयुक्त प्रतिपक्ष का नेतृत्व करने का नैतिक बल जाता रहेगा। इसलिये उसे जहां एक ओर खुद को मजबूत करना होगा वहीं लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ सभी को साथ लेकर संगठित तौर पर उतरना होगा। कांग्रेस अपने अस्तित्व को बचाये रखने का लक्ष्य भी इन दो आयोजनों से साध रही है।
पहले बात करें नागपुर की रैली की। इसी शहर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय है जिसकी विचारधारा का विरोध कांग्रेस प्रारम्भ से ही करती आई है। यहां रैली का आयोजन करना एक तरह से संघ को चुनौती देना तो है ही, यहीं दीक्षाभूमि भी है जहां 14 अक्टूबर, 1956 को बाबासाहेब अंबेडकर ने 5 लाख लोगों के साथ बौद्ध धर्म का अंगीकार किया था। अंबेडकर संविधान के निर्माता भी हैं। कांग्रेस की इस दौर की सबसे बड़ी लड़ाई संविधान को भाजपा द्वारा क्षत-विक्षत होने से बचाने की भी है। इस तरह से देखें तो नागपुर में रैली करने का प्रतीकात्मक महत्व तो है ही, यह रैली उसकी विचारधारा के पुनर्घोष करने जैसा है। अगर यहां उसकी रैली सफल होती है तो उसके बारे में यह विश्वास कायम रहेगा कि वह भाजपा को टक्कर देने का हौसला और शक्ति रखती है।
जहां तक राहुल की यात्रा-2 का सवाल है, तो उसकी महत्ता कई मायनों में है। उनकी पहली यात्रा का मकसद जहां नफरत के बाजार में मोहब्बत की दूकान खोलना था, वहीं प्रस्तावित यात्रा के तीन उद्देश्य हैं। बुधवार की सुबह कांग्रेस के प्रचार प्रभारी जयराम रमेश ने पत्रकारों को बतलाया कि इसे इसलिये न्याय यात्रा का नाम दिया गया है क्योंकि इसके माध्यम से लोगों के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक न्याय की बात उठाई जायेगी। कुछ फासला पैदल चलते हुए और कुछ वाहनों के जरिये तय किया जायेगा। 14 राज्यों से होती हुई लगभग 6200 किलोमीटर की यह यात्रा तकरीबन 359 लोकसभा क्षेत्रों से होकर गुजरेगी। यात्रा मतदाताओं से संवाद भी साधेगी। इसका असर लोगों पर पड़ना लाज़िमी है। ऐसा विश्वास इसलिये व्यक्त किया जा सकता है क्योंकि पहली यात्रा के दौरान उसे लोगों ने स्वत:स्फूर्त प्रतिसाद दिया था और लाखों लोग राहुल के साथ चले थे। कांग्रेस को भी भरोसा है कि इस बार भी पहले जैसा मंज़र देखने को मिल सकता है।
भाजपा की रीति-नीति के कारण जिस प्रकार से आमजनों के साथ यह सरकार आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक स्तरों पर अन्याय कर रही है, उसके चलते कांग्रेस द्वारा इसे न्याय यात्रा का नाम देना उपयुक्त ही प्रतीत होता है। देश में बढ़ती आर्थिक विषमता, महंगाई, बेरोजगारी, जनकल्याण पर घटता खर्च लोगों के साथ हो रहे अन्याय को इंगित करता है। आज अमीरों व सरकार समर्थकों के लिये अलग व्यवस्था है तो समाज में फैलती गैर बराबरी के चलते कमजोर, वंचित, शोषित, अल्पसंख्यकों आदि तबकों को न्याय से दूर कर दिया गया है। ऐसे ही, पिछले दिनों संसद में जो कुछ घटा है, वह बतलाता है कि सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को यह सरकार कतई बर्दाश्त नहीं करती। देश की जो सबसे बड़ी पंचायत है, उसने थोक के भाव में सांसदों को निलम्बित होते देखा है, जो देश के संसदीय इतिहास में कभी भी नहीं हुआ था। सच तो यह है कि देश में दो समाज बना दिये गये हैं- एक कानून को अपनी जूती की नोक के नीचे रखता है, तो दूसरा वह वर्ग है जिसे न्याय की पहुंच से दूर कर दिया गया है। यह यात्रा एक नागरिक के तौर पर भारतीयों को न्याय हासिल कराने का अभियान कही जा सकती है।
पहली यात्रा को 'गैर राजनैतिक' कहा गया था, परन्तु यह दूसरी यात्रा अपने सियासी उद्देश्यों को दरकिनार करती हुई आगे नहीं बढ़ेगी। लोकसभा चुनाव-2024 उसकी आंखों के सामने है और पहली यात्रा में प्राप्त हुई अनेक उपलब्धियों को बरकरार रखने के लिये उसे दूसरी यात्रा को भी सफल बनाना होगा। दोनों यात्राओं के बीच चाहे साल भर का अंतराल आ गया हो परन्तु दोनों परस्पर पूरक हैं। 14 जनवरी, 2024 की यात्रा का संदर्भ पहली से जुड़ा है तो दूसरी के बिना पहली को अधूरी माना जायेगा।